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Friday, June 5, 2020

रेडियो तरंगो का कवरेज तथा संचारण

आधुनिक युग में  कोई भी व्यक्ति रेडियो तरंगों से अछूता नहीं है। उसके परिवेश रेडियो उपकरणों ने हर स्थान पर अपनी उपस्थिति दर्ज़ की है। किसी व्यक्ति की जेब के मोबाइल से लेकर घर की वाई-फाई तक सारे उपकरण रेडियो की तरंगों से ओत-प्रोत है।  ऐसी स्थिति में रेडियो तरंगों से जुड़े हर पहलू को समझना अनिवार्य हो जाता है।  रेडियो तरंगें भी विद्युत् चुम्बकीय तरंगों का ही हिस्सा है जो 10 किलोहर्ट्ज से लेकर 10 गीगाहर्ट्ज तक की आवृत्ति (फ्रीक्वेंसी) में समाहित है।  इन रेडियो तरंगों की प्रवृत्ति उनकी आवृत्ति के अनुरूप अलग-अलग होती है। इसी कारण उनका कवरेज, प्रयोग नाम भी भिन्न-भिन्न हैं।  रेडियो तरंगों की गति 3 लाख किलोमीटर प्रति सैकण्ड अर्थात प्रकाश की गति के बराबर होती है तथा उसके आवृत्ति एवं तरंग दैधर्य के गुणन के बराबर होती है। यदि किसी तरंग की आवृति ज्यादा है तो उसकी वेवलेंथ शुरुआती दौर में कम होती है। शुरुआती दौर में इनकी पहचान उनके वेवलेंथ से होती थी बाद में इन्हे फ्रीक्वेंसी से माना जाने लगा।  इसी कारण  इन्हें  लॉन्ग वेव, मध्यम वेव, शार्ट वेव, माइक्रो वेव, वीएचएफ (वैरी हाई फ्रीक्वेंसी), युएचएफ (अल्ट्रा हाई फ्रीक्वेंसी) के नाम से जाना जाता है। 

रेडियो तरंगो का कवरेज तथा संचारण
रेडियो तरंगो का कवरेज तथा संचारण अलग-अलग है और यही इनके प्रयोग का आधार है।  रेडियो वेव के संचारण में ट्रांसमीटर से लगे एंटीना का बहुत महत्व है।  इन पर ही इनकी दिशा शक्ति तथा उत्सर्जन क्षमता निर्भर करती है।  एंटीना की लम्बाई के साथ-साथ उसकी स्थिति भी बहुत महत्वपूर्ण होती है क्योंकि रिसीविंग एंटीना में उत्पन्न सिग्नल वोल्टेज तरंग के संपर्क में आए एंटिना  की  सतह पर निर्भर करता है। रेडियो वेव द्वारा उत्पन्न सिग्नल वोल्टेज उसके पोलराइजेशन पर भी निर्भर करता है। अलग-अलग तरह के रेडियो वेव का, संचार उपकरण में उपयोग उसके गुणों के आधार पर किया जाता है। 

अच्छे रेडियो सिग्नल के लिए बेहतर टूल की आवश्यकता होती है। इनमें प्रसारण तकनीक से सम्बंधित ज्ञान सबसे प्रमुख है। रेडियो सेट में अच्छा रिसेप्शन हो, इसके  लिए आवश्यक है कि उस स्थान पर रेडियो सिग्नल युजेबल फील्ड/ सिग्नल स्ट्रैंथ से अधिक हो। रेडियो पर आवाज़ सुनने हेतु  सिग्नल रेडियो की सेंस्टिविटी से ज्यादा होना चाहिए। यदि ऐसा नहीं हो तो मात्र शोर सुनाई पड़ता है।  इसके अतिरिक्त प्रत्येक घर या ऑफिस में कुछ ऐसी बाधाएं होती हैं जो रेडियो रिसेप्शन को बर्बाद कर देती हैं। इनमें इलेक्ट्रॉनिक एप्लायंसेस तथा इलेक्ट्रॉनिक उपकरण हैं।  ये सभी उपकरण शोर पैदा करते हैं।  कभी-कभी इनसे निकलने वाले न्वाइज का स्तर रेडियो सिग्नल के समकक्ष होता है। ऐसी स्थिति में  इन्हें स्विच ऑफ कर अच्छा रिसेप्शन प्राप्त किया जा सकता है।  

अच्छे रिसेप्शन के लिए घर में रिसीवर का लोकेशन भी महत्वपूर्ण होता है। कंक्रीट, ईंट और स्टील भी रेडियो सिग्नल के शत्रु हैं।  यदि रेडियो सेट किसी बिल्डिंग के सेंटर में है तो रेडियो रिसेप्शन पर असर पड़ता है।  ऐसी स्थिति में रेडियो स्टेशन का दोष मानने के बजाय रेडियो रिसीवर का लोकेशन बदल कर देखना चाहिए।  अच्छे रिसेप्शन के लिए रेडियो सेट को खिड़की (विंडो) के पास रखना चाहिए।  यदि आवश्यक हो तो आउटडोर एंटीना  का उपयोग कर सकते हैं। 

इन सब बातों का ध्यान रखने पर ही रेडियो रिसेप्शन पर कवरेज का भरपूर फ़ायदा उठाया जा सकता है। यदि किसी श्रोता को अपने क्षेत्र में प्राप्त सिग्नल में असामान्य तौर पर कमी या गुणवत्ता में गिरावट महसूस होती है तो निकटतम केंद्र को पत्र से अवश्य सूचित करना चाहिए। पत्राचार से जुड़ी सभी जानकारी रेडियो विभाग के वेबसाइट पर आज कल उपलब्ध होती है। श्रोता तथा प्रसारण करता दोनों का महत्व है। परस्पर सहयोग से ही अच्छी गुण्वत्ता के कार्यक्रम का आनंद लिया जा सकता है।   



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